छत्तीसगढ़ जनजातीय बहुल राज्य है, तथा इन जनजातियों का एक बड़ा समूह बस्तर क्षेत्र में रहता है। बस्तर में दशहरे के समय बनने वाले दशहरा रथ की समूची निर्माण प्रक्रिया जंगल से उसके लिये आवश्यक लकड़ी हेतु पेड़ चिन्हित करने से लेकर छाजन के लिये पत्ते इकट्ठे करने, कीलें ठोकने, रथ के विविध अंगों का निर्माण करने एवं जगदलपुर में माउली माता के छत्र लाने, उसे सडक़ों पर मोडऩे, खींचकर चलाने आदि तक के सम्पन्न होने में वहाँ की सभी जनजातियों की सुनिश्चित भूमिका होती है। इस दीर्घा में जनजातीय पास्परिकता को चरितार्थ करते इस सारगर्भित प्रादर्श के साथ उन समस्त जनजातियों की विशेषताओं को जोडक़र समझने-दर्शाने की कोशिश उनके भौतिक रूपों से की जा रही है।
इसके अलावा मावली माता की गुड़ी, शीतला माता का स्थान, घोटुल, करमसेनी वृक्ष, एक गली जिसमें कुम्हार, पनिका और लोहार/सुनार के घर और उनके औजार, रूपाकार आदि भी इस दीर्घा में बनाये जा रहे हैं।
बस्तर की अधिष्ठात्री देवी दंतेश्वरी की गुड़ी बस्तर के राजवाड़े के द्वार के भीतर ही है, तथा दंतेश्वरी माता को बस्तर लाने, दशहरा रथ को बनाने, इस पर्व को इस रूप में मनाये जाने, सभी में बस्तर के राज परिवार की बड़ी भूमिका रही है, और इन पर्वों, अनुष्ठानों से बस्तर की समस्त जनजातियाँ गहरा लगाव अनुभव करती हैं। इसी के मद्देनज़र इस दीर्घा के एक प्रवेश द्वार को राजवाड़े के प्रवेश द्वार का रूप दिये जाने पर सम्मति बनी।
अन्य दीर्घाओं की तरह दर्शक यहाँ भी रथ पर चढ़ कर ऊपर से भी दीर्घा तथा इस रथ के रूप को देख सकेंगे।
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