सिद्धा : सिद्धिदात्री का महिमा गान

सिद्धा : सिद्धिदात्री का महिमा गान

7 से 9 अक्टूबर, 2021 | प्रतिदिन सायं - 6:30 बजे


सिद्धा समारोह के दूसरे दिन बघेली गायन एवं दुर्गा नृत्य नाटिका की प्रस्तुति दी गई

शारदीय नवरात्रि के अवसर पर जनजातीय लोक कला एवं बोली विकास अकादमी द्वारा देवी के विविध रूपों को प्रदर्शनकारी कला विधाओं के साथ समवेत करते हुए तीन दिवसीय सिद्धा समारोह का आयोजन जनजातीय संग्रहालय भोपाल के मुक्ताकाश मंच पर किया गया है। समारोह में देवी के 108 स्वरूपों में से आद्या स्वरूप को भरतनाट्यम शैली में, दुर्गा स्वरूप को गणगौर और कथक शैली और जया स्वरूप को बुन्देली एवं समकालीन नृत्य विधाओं पर केन्द्रित कर नृत्य नाटिकाओं के माध्यम से तथा इसके साथ ही देवी की महिमा के गान को बुन्देली, बघेली और निमाड़ी बोली में संयोजित किया गया है। समारोह के दूसरे दिन आज शीला त्रिपाठी और साथियों द्वारा बघेली भक्ति गायन एवं बड़वाह के संजय महाजन और साथियों द्वारा गणगौर एवं कथक शैली में दुर्गा नृत्य नाटिका की प्रस्तुति दी गई। जिसका प्रसारण संग्रहालय के यूट्यूब चैनल https://youtu.be/J4CLpolAIA8 और फेसबुक पेज https://www.facebook.com/events/407901940946835/?sfnsn=wiwspwa पर लाइव प्रसारित किया गया।

प्रस्तुति की शुरूआत शीला त्रिपाठी और साथियों द्वारा बघेली भक्ति गायन से की गई। कलाकारों ने ऊँचे पहड़िया बसी -मोरी मईया..., मईया बिनती करूं कर जोर..., माई नौ दिन करें श्रृंगार मईया धीरे धीरे अईयो...,एवं मोरे अंगना मईया मोरे अंगना जगदम्बा भवानी आई मोरे अंगना...,गीत की प्रस्तुति दी। इनके साथ मंच पर हारमोनियम पर मांगीलाल ठाकुर, की-बोर्ड पर प्रसन्न राव, तबले पर अभय ठाकुर, ढोलक पर मोहित ठाकुर एवं मंजीरा पर अनुराग शर्मा ने संगत की।

दूसरी प्रस्तुति बड़वाह के संजय महाजन और साथियों द्वारा गणगौर एवं कथक शैली में दुर्गा नृत्य नाटिका की दी गई। दुर्गा का निरूपण सिंह पर सवार एक देवी के रूप में किया जाता है। दुर्गा देवी आठ भुजाओं से युक्त हैं जिन पर कोई न कोई शस्त्रास्त्र होते है। उन्होने शुंभ निशुंभ, मधु कैटभ आदि कई राक्षसों का वध कियाl महिषासुर नामक असुर का वध करने के कारण महिषासुरमर्दिनि नाम से विख्यात हुईl माता का दुर्गा देवी नाम दुर्गम नाम के महान दैत्य का वध करने के कारण पड़ा। माता ने शताक्षी स्वरूप धारण किया और उसके बाद शाकंभरी देवी के नाम से विख्यात हुईं। शाकंभरी देवी ने ही दुर्गमासुर का वध किया। जिसके कारण वे समस्त ब्रह्मांड में दुर्गा देवी के नाम से भी पूज्य हो गईं। पुराण में दुर्गा को आदिशक्ति माना गया है। दुर्गा असल में शिव की पत्नी आदिशक्ति का एक रूप हैं, शिव की उस पराशक्ति को प्रधान प्रकृति, गुणवती माया, बुद्धितत्व की जननी तथा विकाररहित बताया गया है। मार्कण्डेय पुराण में ब्रहदेव ने मनुष्‍य जाति की रक्षा के लिए एक परम गुप्‍त, परम उपयोगी और मनुष्‍य का कल्‍याणकारी देवी कवच एवं देवी सुक्‍त बताया हैl भगवत पुराण के अनुसार माँ जगदम्‍बा का अवतरण श्रेष्‍ठ पुरूषों की रक्षा के लिए हुआ है। जबकि श्री मद देवीभागवत के अनुसार वेदों और पुराणों की रक्षा के और दुष्‍टों के दलन के लिए श्रीदेवों ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश के दिव्य तेजों से माँ जगदंबा का अवतरण हुआ है। इसी तरह से ऋगवेद के अनुसार माँ दुर्गा ही आदि-शक्ति हैं, उन्‍हीं से सारे विश्‍व का संचालन होता है और उनके अलावा और कोई अविनाशी नहीं हैं।

समारोह के तीसरे दिन 9 अक्टूबर को सौम्या मंगरोले और साथियों द्वारा निमाड़ी भक्ति गायन एवं भोपाल के योगेंद्र सिंह राजपूत और साथियों द्वारा बुन्देली और समकालीन नृत्य विधाओं में जया नृत्य नाटिका की प्रस्तुति दी जाएगी। समारोह में आप सादर आमंत्रित हैं।

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